आई बरखा बहार
पड़े रस.की फुहार
नाच उठा मनमयूर
पक्षी की कलरव
कोयल की बोली
मेढक की टर्र टर्र
झिंगुर की झन झन
पेड़ों की सर्र सर्र
बिजली की तम - तम
बादल की गड़-गड़
हवा.की सन - सन
पानी की झर्र -झर्र
धरती की सौंधी गंध को
लाई है साथ -साथ
मन की अंगडाई को
पेडों की हरियाली को
झरने की फुहारों को
नदियों के उफान को
सब पर लहराती आई
तन -मन तृप्त करती
धरती को ठंडक पहुंचाती
सब त्रतुओ की रानी
यह है. हमारी बरखा रानी
राजा - रंक सबकी प्यारी
हर प्राणी की जीवनदायिनी
तुम बिन सूनी दूनिया सारी
इसलिए तो सबकी प्यारी
सबकी आशा तुम पर
बाट जोहते जन -जन
स्वागत मे बिछाते पलकें
जी भर प्यार लूटाते
बस तुम आती रहना
अपना स्नेह लूटाती रहना
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Wednesday, 23 May 2018
आई बरखा बहार
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