आदमी यह सोचता बहुत है
आज कल और आज के बीच अटका रहता है
कुछ न कुछ अटकलें लगाता रहता है
लगातार दिमाग मे कुछ घुमड़ता रहता है
कल क्या हुआ
कल क्या होगा
इसी ख्याल मे जकडा रहता है
हकीकत मे नहीं ख्वाब मे जीता है
ख्वाहिश तो बहुत करता है
पर साथ यह भी जानता है
कि कल का कोई भरोसा नहीं
फिर भी योजना बनाता है
कल को पकड़ दुखी होता रहता है
आने वाले कल के लिए चिंतित रहता है
इसी कश्मकश मे आज का आनंद भी खो देता है
यहाँ तक कि मौत के बाद की कल्पना भी कर लेता है
कौन और कितने लोग आएंगे
काम क्रिया कैसे होगा
कोई याद करेगा या नहीं
इसी उधेड़बुन मे जिंदगी भी जीना भूल जाता है
अगर सब भ्रमजाल से निकल जाय
सब ऊपर वाले पर छोड़
अपना कर्म करता रहे
तब जाकर वह आदमीयत सार्थक कर पाएगा
और इस भवसागर से आराम से पार उतर जाएगा ।
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