हनुमान जी कौन हैं।
पार्वती के भडाक से दरवाजा बंद करने के और चलने के अंदाज से ही शिव समझ गए थे कि बात कुछ गंभीर है। रही सही कसर कार्तिक और गणेश के रुआंसे चेहरे ने बयान कर दी । शिव जी जानते थे इस समय बोलने का मतलब आफत मोल लेना है इसलिए मौन रहकर पार्वती के बोलने का इंतजार करने लगे। आखिर पार्वती फूट पड़ी, महादेव अपने इस भक्त को कैलाश आने से रोक दीजिए वरना किसी दिन मैं इसे अग्नि में भस्म कर दूंगी यह जब भी आता है इसके दस सिर देखकर ही एक तो मेरे बच्चे डर जाते हैं
दूसरे वह कभी कार्तिक के कान खींच लेता है और कभी गणेश की सूंड खींच कर उसे परेशान करता है यह बात मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप इसे समझा दीजिए यह कैलाश में प्रवेश न करें। शिव जी जानते थे की पार्वती सिर्फ उनके वरदान की मर्यादा रखने के लिए रावण को कुछ नहीं कहती हैं अन्यथा वह उन्हें फूटी आंख भी नहीं सुहाता है । वह चुपचाप उठकर बाहर आकर देखते हैं । रावण नंदी को परेशान कर रहा है शिव जी को देखते ही वह हाथ जोड़कर प्रणाम करता है । प्रणाम महादेव। आओ दशानन कैसे आना हुआ ? मैं तो बस आप के दर्शन करने के लिए आ गया था महादेव। अखिर महादेव ने उसे समझाना शुरू किया देखो रावण तुम्हारा यहां आना पार्वती को बिल्कुल भी पसंद नहीं है इसलिए तुम यहां मत आया करो । महादेव यह आप कह रहे हैं आप ही ने तो मुझे किसी भी समय आप के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर आने की छूट दी है और अब आप ही अपने वरदान को वापस ले रहे हैं । ऐसी बात नहीं है रावण लेकिन तुम्हारे क्रियाकलापों से पार्वती परेशान रहती है और किसी दिन उसने तुम्हें श्राप दे दिया तो मैं भी कुछ नहीं कर पाऊंगा इसलिए बेहतर यही है कि तुम यहां पर न आओ। फिर आप का वरदान तो मिथ्या हो गया महादेव । मैं तुम्हें आज एक और वरदान देता हूं तुम जब भी मुझे याद करोगे मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आ जाऊंगा लेकिन तुम अब किसी भी परिस्थिति में कैलाश पर्वत पर मत आना। अब तुम यहां से जाओ पार्वती तुमसे बहुत रुस्ट है। रावण चला जाता है।
समय बदलता है हनुमानजी रावण की स्वर्ण नगरी लंका को जला कर राख करके चले जाते हैं और रावण उनका कुछ नहीं कर सकता है । वह सोचते सोचते परेशान हो जाता है कि आखिर उस बन्दर में इतनी शक्ति आई कहां से। परेशान हो कर वह महल में ही स्थित शिव मंदिर में जाकर शिवजी की प्रार्थना आरंभ करता है।
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले ।
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।।
उसकी प्रार्थना से शिव प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं। रावण अभिभूत हो कर उनके चरणों में गिर पड़ता है। कहो दशानन कैसे हो ? शिवजी पूछते हैं।
आप अंतर्यामी हैं महादेव सब कुछ जानते हैं प्रभु । एक अकेले बंदर ने मेरी लंका को और मेरे दर्प को भी जला कर राख कर दिया । मैं जानना चाहता हूं कि यह बंदर जिसका नाम हनुमान है आखिर कौन है ? और प्रभु उसकी पूंछ तो और भी ज्यादा शक्तिशाली थी किस तरह सहजता से मेरी लंका को जला दिया। मुझे बताइए कि यह हनुमान कौन है ?
शिव जी मुस्कुराते हुए रावण की बात सुनते रहते हैं और फिर बताते हैं कि रावण यह हनुमान और कोई नहीं मेरा ही रूद्र अवतार है । विष्णु ने जब यह निश्चय किया की वे पृथ्वी पर अवतार लेंगे और माता लक्ष्मी भी साथ ही अवतरित होंगी तो मेरी इच्छा हुई कि मैं भी उनकी लीलाओं का साक्षी बनूं। और जब मैंने अपना यह निश्चय पार्वती को बताया तो वह जिद कर बैठी कि मैं भी साथ ही रहूंगी लेकिन यह समझ नहीं आया कि उसे इस लीला में किस तरह भागीदार बनाया जाए। तब सभी देवताओं ने मिलकर मुझे यह मार्ग बताया आप तो बंदर बन जाइये और शक्ति स्वरूपा पार्वती देवी आपकी पूंछ के रूप में आपके साथ रहे तभी आप दोनों साथ रह सकते हैं। और उसी अनुरूप मैंने हनुमान के रूप में जन्म लेकर राम जी की सेवा का व्रत रख लिया और शक्ति रूपा पार्वती ने पुंछ के रूप में और उसी सेवा के फल स्वरूप तुम्हारी लंका का दहन किया। अब सुनो रावण तुम्हारे उद्धार का समय आ गया है अतः श्री राम के हाथों तुम्हारा उद्धार होगा मेरी सलाह है कि तुम युद्ध के लिए सबसे अंत में प्रस्तुत होना जिससे कि तुम्हारा समस्त राक्षस परिवार भगवान श्री राम के हाथों से मोक्ष को प्राप्त करें और तुम सभी का उद्धार हो जाए । रावण को सारी परिस्थिति का ज्ञान होता है और उस अनुरूप वह युद्ध की तैयारी करता है और अपने पूरे परिवार को राम जी के समक्ष युद्ध के लिए पहले भेजता है और सबसे अंत में स्वयं मोक्ष को प्राप्त होता है।
अब आप सभी लोग निश्चय कीजिए की हनुमान दलित है मुसलमान हैं खिलाड़ी है, आदिवासी है या जाट। वैसे कितनी प्रसन्नता की बात है कि हनुमान को सभी लोग अपना बनाने के लिए आतुर है और यही हनुमान जी की खासियत है जय श्री हनुमान।जय श्रीराम।
स्रोत-सोशल मीडिया
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