नशा तो नशा ही होता है
चाहे वह किसी भी चीज का हो
मादक पदार्थों का हो
शराब का हो
तम्बाकू का हो
फिल्मों का हो
टेलीविजन का हो
मोबाइल का हो
प्यार का हो
व्यक्ति को अपना गुलाम बना लेता है
उसके जीवन को अपने ढंग से चलाने लगता है
वह आदी हो जाता है
उसे अपना भान नहीं होता
जीवन नशे की गिरफ्त में
उसी के इर्दगिर्द
सोचने समझने की गुंजाइश नहीं
जीवन नशा नहीं है
उसका गुलाम न बने
अति तो कोई भी ठीक नहीं
No comments:
Post a Comment