बीज फूलों मे पनपता है
महफूज रहता है
फूल अपनी कोमल पंखुड़ियों मे उसे सहेजे रहता है
यही बाद मे फल मे आ जाता है
तब भी वह महफूज
लेकिन जैसे ही फल पेड से अलग हुआ
उसका इस्तेमाल कर फेंक दिया जाता है
वह यहां - वहां भटकता रहता है
कहीं कचरे के ढेर मे
कही मैदान -सडक पर
जैसे ही मिट्टी मे समाता है
फिर खड़ा हो उठता है
एक विशाल पेड़ बन खड़ा हो जाता है
वही कोमल बीज
एक वटवृक्ष बन जाता है
क्योंकि वह खत्म होना नहीं जानता
अदभ्य जिजिविषा है उसमें
वह हार नहीं मानता
परिस्थितियों के सामने झुकता नहीं
आंधी /तूफान उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते
उसको उठा कर यहां से वहां पटक देते हैं
पर वह उठ खड़ा होता है
नये रूप मे निखरता है
नयी पौध बन खड़ा होता है
हार नहीं है उसके गिरने मे
वह जीत का परचम फहराता है
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