Wednesday, 13 March 2019

सांस की डोर प्रकृति संग

यह गगनचुंबी ईमारतें
यह गगन छूता हवाई जहाज
यह फर्राटेदार बाईक
यह भागती रेलगाड़ी
यह हाथ मे मोबाईल
यह पानी को चीरती पनडुब्बी
जल ,थल , आकाश
सभी पर मनुष्य का वर्चस्व
सभी उसके कंट्रोल मे
पर वाकई ऐसा है क्या??
कोई उसके सामने टिक नहीं सकता
सब जीवों मे श्रेष्ठ
सभी को अपनी मुठ्ठी मे करने को आमादा
सारी सृष्टि उसके वश मे
फिर भी वह असहाय
कब प्रकृति करवट ले
कब विनाश हो
कब उसे यह सब छोड भागना पड़े
यह तो उसे नहीं पता
पर वह तो चूर है मद मे
अपने ज्ञान के घमंड मे
सभी को नष्ट कर रहा अपने स्वार्थ के लिए
अपने विकास के लिए
स्वार्थी हो गया है
वह भूल गया कि
प्रकृति जिस दिन साथ छोड़ देगी
वह नष्ट हो जाएगा
अकेले तो रह ही नहीं पाएगा
कुदरत के कहर से बचना है
तब उसका भी कण कण बचाना होगा
कुदरत बहुत कुछ देती है बिन मांगे
जब लेती है तब बिन मांगे सब ले भी लेती है
उसे रोकना तो किसी के बस नहीं
विज्ञान खड़ा देखता रह जाएगा
वह आविष्कार कर सकता है
सुविधा दे सकता है
पर सांसो की डोर तो प्रकृति से बंधी है
वह सही तो सब सही

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