कब तक इंसानियत शर्मसार होती रहेगी
कब तक हैवानियत नग्न खेल खेलती रहेगी
कब तक मासूम बेटियां हवस की शिकार होती रहेगी
कब तक ये नराधम नरपिशाच जान लेते रहेंगे
बहुत हुआ
अब और नहीं
इनके हौसले को पस्त करें
तुरन्त फैसला
न कोई अदालत
न कोई सुनवाई
बस फांसी
द॓ड इस तरह
कि दूसरे भी कांप जाय
फिर इस तरह की हिमाकत न करें कोई
आए दिन यह सब
कभी यहाँ तो कभी वहाँ
देश के हर कोने से ऐसी खबर
कानून मजबूर
सरकार विवश
समाज तमाशबीन
समाज आगे आए
बहिष्कृत किया जाय
अब अबला नहीं बनना है
शस्त्र उठाना है
सबसे पहले समाज की भागीदारी
उसमें भी महिला को उठना है
घर में ही सर कुचलना है
फिर वह पति हो पुत्र हो या भाई
अपनी जाति की अस्मत की रक्षा की कमान
स्वयं संभालनी है
अभी ही संभलना है
नारायण नहीं आएंगे इस कलयुग में
इन दुश्वारियों के आगे झुकना नहीं है
इक्कीसवीं सदी की सबला है
संबल बनना है
जो कर सकते वह करना है
समाज को बदलने का माद्दा
अब नारी तुम्हारे हाथ में
संसार की जन्मदात्री हो
उसे सुंदर बनाना है
सुधारना है
लगाम लगाकर रखो
सहभागी मत बनो
यह नारी की अस्मिता का सवाल है
जिसमें सबकी भागीदारी जरूरी है
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