अखबार मेरी जान
आखिर क्या मिलता है मुझे
क्यों पढे बिना चैन नहीं
सुबह की चाय के साथ ही अखबार
बरसों से यही सिलसिला
न पढा तो लगता
कुछ खो गया है
समय निकालकर पढना ही है
आज समझ आ रहा है
यह हमे दुनिया से जोड़ता है
हम मानव जो है
इसमें मन भी है
खुशी होती है
दुख होता है
गुस्सा आता है
विचलित होते हैं
संवेदना जगती है
आहत होते हैं
उत्साह निर्माण होता है
यह पेपर है
पर इसका पारावार नहीं
दुनिया इसके इर्द-गिर्द घूमती है
तभी तो हमारा मन भी इसी के इर्द-गिर्द
जिसने इससे दोस्ती कर ली
वह कभी अकेलापन नहीं महसूस सकता
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