बूंदे बरस गईं
अपना छाप छोड़ गई
धरती को जलमग्न कर गई
कुछ पेड़ पर
कुछ पत्ती पर
कुछ फूलों पर
कुछ मिट्टी में
हर बूंद अपना भाग्य लेकर आई
कुछ देने के लिए ही आईं
अपने को मिटाकर
दूसरों के लिए जी ली
क्षण भर ही सही
कुछ काम तो आई
पक्षी चोंच फैलाए
राह देख रहे थे
बच्चे हाथ में ले
खुश हो रहे
कोई पंख फैला रहा
कोई जीभ निकाल रहा
यह सब पर पड रही
उनके लिए न कोई
अपना न पराया
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