न अलग तौलिया था
न अलग बिस्तर था
न अलग कंघा था
न अलग साबुन था
हर सामान साझा था
बीमारी से इनका न कोई नाता था
आज सबका अपना अपना
फिर भी बीमारी ने घेरा
एक्वागार्ड नहीं था
तरह तरह के मच्छर भगाने वाले नहीं थे
क्लीनर नहीं थे
तब भी जिंदगी आराम की थी
शैम्पू नहीं था न खास तेल था
तब भी बाल घनेरे थे
टूथपेस्ट नहीं थे तरह तरह के
फिर भी दांत मजबूत थे
पिज्जा बर्गर नहीं था
बासी रोटी के नाश्ते में जिंदगी खुशगवार थी
मंहगे प्राइवेट स्कूल नहीं थे
घर के पास वाली सरकारी स्कूल में भी बचपन गुलजार था
पढे लिखे खेले
बडे अफसर भी बने
आज उस अतीत पर वर्तमान टिका है
सब कुछ है
पर उस अतीत में भी एक अलग ही बात थीं
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