मछली जल का जीव
जल ही उसका जीवन
जल की वह रानी
गड्ढा हो तालाब हो खेत हो
जहाँ पानी वही यह
समुंदर तो खैर अथाह
समुंदर की लहरों के साथ हिचकोले लेती
संमुदर को घमंड है
जब चाहे निकाल फेकूगा
इसकी औकात ही क्या
पर वह इसकी परवाह नहीं करती
उसे मालूम है
वह ऐसा कर ही नहीं सकता
वह तो उसका घर
उसे कैसे बेघर कर सकता है
वह प्रयत्न करता है
वह जिस लहर के साथ आई है
उसी के साथ फिर अंदर भी चली जाती है
मन मर्जी करती है
उछलती कूदती है
समुंदर को बताना चाहती है
मैं यहाँ से जानेवाली नहीं
यही हाल नागरिकों का है
वह अपना घर बार शहर देश छोड़ कर
अगर बरसों से वहाँ बस गए हैं
फिर वह कनाडा हो अमेरिका हो
मुंबई हो दिल्ली हो या कोई शहर
दो तीन पीढ़ियों से रहा व्यक्ति कहाँ जाएँ
वह तो वह मछली है
जो सब छोड़ विशाल समुंदर में आई है
अब जीना और मरना तो यही है
वापस लौटना इतना आसान नहीं
घूमने जा सकते हैं
कुछ समय के लिए
पर रैन बसेरा के लिए नहीं
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