जब अंधेरा गहराता है
तब भय मन में समाता है
आज की रात कैसे कटेगी
रात में कुछ अप्रिय न घट जाय
सब परेशान होंगे
जब सुबह होती है
तब चेहरे पर मुस्कान आती है
सुकून मिलता है
चलो आज की रात तो अच्छी कटी
एक एक रात के लिए चिंतित होता है मन
जबकि पल का भी ठिकाना नहीं
कुछ वश में भी नहीं हमारे
पता है सब ऊपर जो बैठा है
उसी के हाथ में
तब फिर भय का क्या काम
भय मुक्त हो जाय
वह तो कुछ करेंगा ही
फिर चाहे वह
रात हो या दिन
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