शंख ,घंटा और अजान
कोई इनसे नहीं अंजान
यह भेदते है दिलों को
इनकी आवाज कानों से हो मन तक
स्मरण कराते ईश्वर का
ईश्वर की संतान सब
शांति और प्रेम ही हर मजहब का संदेश
ये गूंजते हैं
ये बोलते हैं
ये कहते हैं
इनकी ध्वनि तरंगित होती है
तन - मन में इनका संचार
फिर क्यों होता बवाल
जग का संचालन ऊपरवाला
हम तो बंदे उसके
रहे मिल जुलकर
बना रहे भाईचारा
सबको कफन में लिपटना है
कोई जलेगा तो कोई दफन होगा
पर गति तो सबकी एक ही
मिट्टी का शरीर मिट्टी में ही मिलना है
फिर जब तक शरीर में जान
तब तक कर ले कोई नेक काम
खुदा के पास खुद का हिसाब देना होगा
अपने हिस्से का
अपने किए का परिणाम भुगतना होगा
वह सब देखता है
फैसला भी करता है
तब ऐसा काम करें
जिससे सब फख्र महसूस करें
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