ठंडी ठंडी
गजब की ठंडी
बना गई
सबको बंदी
सब दुबक रहे
शाल और रजाई में
सडकों पर पसरा सन्नाटा
एक तो कडाके की ठण्डी
ऊपर से मार मंदी की
जेब कैसे करे ढीली
हर चीज में करनी पड रही कमी
कटौती कटौती करते करते
जान पड गई सांसत में
ठंडी और मंदी
दोनों ने कर दिया जीना दुश्वार
अब तो हो गई हद
मन करता है
कब दोनों को भगाए
दोनों ने है अपना
अड्डा जमाया
प्रतीक्षारत में हैं
ऑखे लगी
कब भागे
ठंडी और मंदी
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