दिवार पर टंगी घडी
टिक टिक करती
समय दिखाती
चौबीस घंटों का चक्र
दिन ,सप्ताह ,महीना और साल
चलता रहता है
कभी बंद पड जाती है
तब नयी बैटरी डाल दी जाती है
फिर उसी रफ्तार से
पर जीवन नहीं
वह बदलता जाता है समयानुसार
हर दिन उम्र के कम होते जाते हैं
समय का चक्र भी एक सा नहीं चलता
कभी आगे कभी पीछे
कभी ऊपर कभी नीचे
कब रफ्तार धीमी पड जाय
कब टिक टिक करती धडकनें बंद हो जाय
जो चला जाता है
वह फिर घडी की सुइयो की तरह उसी स्थान पर वापस नहीं लौटता
यह जीवन की घडी
इसका कांटा ऊपरवाले के इच्छानुसार चलता है
जब समय आ जाता है
तब पैसा ,डाक्टरों की टीम
मंहगे अस्पताल मंहगी दवाइयां
कुछ काम नहीं करते
बस दुआ काम करती है
तब दुआ ली जाए
किसी की बददुआ नहीं
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