लाखों करोड़ों का तोहफा
सरकार की तरफ से
अर्थ व्यवस्था को उबारने के लिए
मजदूरों को यह समझ नहीं आ रहा है
उनको तो लाख की भी गिनती नहीं आती
तब वह क्या समझेंगे
वे तो रोज कुआं खोदते है
रोज पानी निकालते हैं
वे दीहाडी मजदूर है
ज्यादा हुआ तो महीना
जो आता है
वह पहली तारीख से ही खत्म होने लगता है
कुछ पहले का उधार
कुछ किराया
कुछ राशन
कुछ नून तेल मसाला
तब उनको यह गणित कहाँ समझेगा
वह तो अभी भी पैदल चले जा रहे हैं
हर रोज दुर्घटना ग्रस्त हो रहे हैं
वे कोई त्याग नहीं कर रहे हैं
जिन्दा रहने की कोशिश कर रहे हैं
जब पेट भूखा हो
अभाव हो
तब त्याग की बात बेमानी लगती है
महावीर और भगवान बुद्ध
राजा के बेटे थे
तभी उनको शांति 'त्याग और जीवन की परिभाषा समझ आई
भूखे पेट भजन न होय गोपाला
कोई उनके त्याग की बात न करें
उन्हें उनके गांव घर पहुँचा दे
बस वह भी उनके लिए काफी है
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