एक डायलाग बहुत प्रचलित हुआ था
सबसे बडा एहसान कि कोई मुझ पर एहसान न करें
एहसान शब्द एहसास दिलाता है
बार बार यह ख्याल दिलाता है
हमारी मजबूरी का
विवशता का
कमी का
आज मोबाइल से फोटो खींचे जा रहे हैं
जो लोग भलाई का काम कर रहे हैं
भोजन या और चीजें बांट रहे हैं
साथ में यह भी तो हो रहा है
जो ले रहा है
हाथ फैलाए
खाने को मजबूर
वह मजदूर जिसको अपनी कमाई पर भरोसा
जो बारह सौ और चौदह सौ किलोमीटर चल रहा हो
उसकी विवशता को बयान करता
हम थोड़ा चलने से थक जाते हैं
गाडी और बस में यात्रा करने पर भी
नाश्ता , भोजन और पानी के साथ
खाली हाथ वह भी
और यह कम्युनिटी चली जा रही है
सर पर बोझ भी
बगल में बच्चा भी
यह इतने मजबूर भी नहीं
काम करनेवाले श्रमिक
भीख पर जीने वाले नहीं
अपने बांहों पर भरोसा करने वाले
इन पर एहसान को तमाशा न बनाया जाए
इनके ऑसू पर राजनीति न की जाए
एहसान न करें
एहसास करें
हमारे सत्ता पर बैठे हुए महान लोग
आपकी राजनीति भी इन्हीं से चलती है
वोट बैंक है आपका
तब इनके लिए समुचित प्रबंध करना जिम्मेदारी है
एहसान नहीं
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