कब मेरी मुंबई फिर रौनक होगी
कब रोशनी से नहाएंगी
कब हम मरीन ड्राइव का नजारा देखेंगे
कब समुंदर की लहरों के साथ खेलेंगे
कब बडा पाव और कटिंग चाय का मजा लेंगे
कब इटली और डोसे वाले की भोंपू की पौ पौ सुन झांकेगे
कब भेलपुरी और शेवपुरी वाले भैया का शाम होने का इंतजार करेंगे
कब पाव भाजी के ठेले पर जमा होंगे
कब चलते चलते चना सींग खाएंगे
कब ढोकला और फाफडा साथ में चटनी का चटखारे लेंगे
कब गरम गरम जलेबियाँ तलने का इंतजार करते खडे रहेंगे
कब भाखरवाडी और कचोरी का स्वाद लेंगे
कब मोनजीस कप केक लेकर खाएंगे
ऐसे ही रातों में बिना कारण घूमेंगे
कब लोकल की भीड़ में धक्के से चढेगे
धक्का खाकर उतर भी जाएंगे
कब बेस्ट की बस को सिगनल पर खडा देख दौड़ लगाएंगे
कब होटल और रेस्तरां गुलजार होंगे
कब वह सुलभ शौचालय के बगल में ठेले वाले से लेकर भुर्जी पाव खाएंगे
गन्ने का जूस , नारियल पानी सब गायब है
घर का खाना तो है
लाजबाब पकवान भी बन रहे हैं
पर जो स्वाद इन ठेलो के व्यंजनों का
खाऊगली के पकवानों का
ईरानी के मस्का पाव का
उसकी तो कोई तुलना नहीं
घर की लहसुन की चटनी में वह बात कहाँ
डोसे वाले के सांभर और रसम में जो वह घर में कहाँ
सुबह-सुबह पोहा , उपमा और दाल पकौड़ा
साथ में मीठा शीरा
वह मिठास कहाँ
जेब टटोला जाता था
अब कितने बचे
और क्या क्या खा सकते हैं
सस्ता - मंहगा सब
जैसी जिसकी जेब
सब याद आ रहे हैं
मन मसोसकर रह जा रहा है
कब गलियाँ और रास्ते गुलजार होंगे
कब मेरी मुंबई हंसेगी , खिलखिलाएगी
भीड़ लगाएंगी
कब मेरी मुंबई फिर रौनक होगी
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