बाप तो बाप होता है
हर हाल में बच्चों का भार ढोता है
अपने स्वयं कपडे पुराने पहनता
बच्चों को नया पहनाता
दिन रात एक करता
अपना निवाला उनके मुंह में डालता
सर पर बोझ लेकर चलता
बैल की जगह खुद भी जूत जाता
श्रम पसीना एक करता
संतान के भविष्य को बनाता
कहना बहुत कुछ चाहता
कह नहीं पाता
उसकी कठोरता संतान को नहीं भाता
उसके अंदर की कोमलता कोई देख नहीं पाता
वह भी चाहता तो आराम से रहता
वह ऐसा नहीं करता
वह दशरथ की तरह पुत्र मोह में प्राण भी देता
वह धृतराष्ट्र की तरह इतिहास में बदनाम भी होता
वह किसी से नहीं हारता
अपनी संतान से हारता
कितना प्रेम करता
वह नहीं किसी को दिखता
माता का प्रेम जग-जाहिर
पिता का प्रेम उसका उल्लेख कहीं नहीं
आसमान की छत्रछाया है पिता
धरती डोलती है
आसमान नहीं डोलता
नदी पिघलती है
पर्वत नहीं पिघलता
वह प्रहरी बन हमेशा खडा रहता
टूट जाता है
पर झुकता नहीं
वह पिता है
संतान से उपेक्षित
फिर भी उसके लिए चिंतित
घर का कर्ता धर्ता
सब कुछ पिता
सब निश्चिंत होते
जब तक साथ रहता पिता का
अपने से ज्यादा संतान को प्यार करता
बाप तो बाप होता है
हर हाल में बच्चों का भार ढोता है
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