हम दोस्त तो नहीं थे
क्योंकि रोज झगड़ते थे
एक दूसरे की खिंचाई करते थे
शिकायत भी करते थे
एक ही कक्षा में पढते थे
सर से पिटवाते थे
मजाक मस्ती में क्या क्या गुल खिलाते थे
अपनी टोली में शामिल नहीं करते थे
मजा आता था छेड़ने में
आज हम अलग अलग है
तुम कहाँ हम कहाँ
यह तो नहीं पता
हाँ वह मस्तियाँ आज भी साथ है
फिर न वैसा मौका मिला
न कोई तुम जैसा मिला
दुश्मनी थी कौन सी पता नहीं
पर जिस दिन तुम न आते थे
एक बैचैनी छायी रहती थी
तुम पढाई में अव्वल
हम पढाई मे फिसड्डी
तुम अगली कतार वाले
हम पिछली कतार वाले
तुम उसूलो के पक्के
हमारे लिए तो सब जायज
संयोग ऐसा होता
परीक्षा में हम आगे पीछे
तुम पढ़ाकू मैं नकलची
पर मजाल कि तुम एक भी उत्तर बता दो
इसलिए तो चिढता था
तुमको परेशान करने के नए-नए तरीके ढूढता था
एक दिन ऐसा आया
सब जुदा-जुदा
हम अपनी राह तुम अपनी राह
आज उम्र हो गई है
बच्चों का बाप बन गया हूँ
चाहता हूँ मेरे बच्चे तुम्हारे जैसे बने
पढ़ाकू और उसूलो वाले
जब जब उनको सिखाता हूँ
जेहन में तुम ही रहते हो यार
शायद वह दुश्मनी नहीं थी
एक लगाव था
जो तब नहीं समझा
आज समझ आ रहा है
तुम बिल्कुल सही थे
तभी तो आज भी गाहे बगाहे याद आ जाते हो
नहीं तो भला दुश्मन को कौन याद करना चाहता है
तुम आज भी बहुत याद आते हो दोस्त
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