अकड और आत्मसम्मान
यह एक नहीं है
बल्कि विपरीत है
आत्मसम्मान बनाए रखना
यह तो बहुत जरूरी
अगर आत्मसम्मान न हुआ
तब बाकी बचा क्या ??
वह तो बात नहीं करती
बहुत अकडू है
ऐसा क्या है
इतनी अकड दिखाती है
कह तो दिया गया
कभी सोचा ऐसा रवैया क्यों ??
क्या बात करें
बात करने लायक स्वयं को बनाओ
अपनी जबान और अपना व्यवहार
खोद खोद कर गडे मुर्दे निकालना
व्यंग्य भरी वाणी
फिर उसका प्रचार-प्रसार
आत्मसम्मान को गिराने मे तनिक भी कोताही नहीं
इससे तो अकडू की उपाधि ही भली
ऐसी जगह का क्या फायदा
जहाँ पल पल पर तोड़ा जाय
अपना खाते हैं
अपने घर मे रहते हैं
किसी के बाप का नहीं
मेहनत और लगन से काम करते हैं
चमचागीरी और चुगलखोरी नहीं
अकड नहीं
गर्दन उठाकर चलना है
अपना आत्मसम्मान बरकरार रखना है
ऐसे सिरफिरे हितैषियों को तो नजर उठाकर भी नहीं देखना है
बात तो दूर की रही
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