बोलना हमें भी आता है
यह बात दिगर है
हम बोलते नहीं
हम जताते नहीं
क्योंकि हम आपको अपना समझते हैं
वह बात बोलकर क्या फायदा
जो दिल में नश्तर की तरह चुभ जाए
संबंधों में दूरी ला दे
ऐसे बोलने से तो न बोलना ही बेहतर
बात हो तो बात की तरह
वरना न हो
तब तो चुप्पी ही भली
सच सबको पता है
आप क्या है
हम क्या है
यह भी पता होता है
तब बातों से भारी पडना और दवाब बनाना
यह ज्यादा नहीं टिकता है
मन खुला हो
बात संभली हो
तब रिश्ते भी संभलते हैं
अन्यथा देर नहीं लगती
सब कुछ टूटने में
तब पछतावा
बात कहने वाला और सुनने वाला ही दूर
पास आना है तब बात भी करना होगा
यह जितना सोचा समझा हो
तभी टिक पाता है
अन्यथा बहुत कुछ तोड़ जाता है
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