देखा है तुमको जब से
मेरे नैनो में अक्स तुमसी
रची बसी मन मंदिर में
जो मूर्ति बसाई थी दिल में बरसों पहले
वैसी ही खूबसूरत है बरसों बाद
वही खूबसूरती
वही अदा
वही शर्माना
वही कोमलता
वही मुस्कान
वही गालों के गड्ढे
वही सुर्ख चेहरे की लालिमा
वही माथे की लट झटकना
वही इतराना
वही गुनगुनाना
कुछ भी तो नहीं बदला है
मुझे तो तुम आज भी वैसी ही लगती हो
जैसे बरसों पहले लगती थी
अब भी प्यार वैसा ही है
शायद पहले से भी मजबूत
अब भी हर अदा सुहावनी ही लगती है
बालों की सफेदी भी चांदनी लगती है
मुस्कान और भी न्यारी लगती है
चेहरे की झुर्रिया भी मनभावन लगती है
अस्फुट आवाज भी गुनगुन लगती है
तब भी साथ तुम्हारा प्यारा लगता था
आज भी साथ प्यारा लगता है
वक्त के फेविकोल का यह जोड़ बहुत मजबूत लगता है
जुदाई का सोच भी मन घबराने लगता है
बस ऐसी ही रहो
डोलती फिरती रहो
साथ चलती रहो
धीरे-धीरे ही सही
तब सब कुछ सही है
तुम्हारे बिना तो जीवन भी नहीं है
No comments:
Post a Comment