मैं चल रही थी
चलती रही थी
बिना थके
बिना रूके
कुछ पाना था
आज भी चल ही रही हूँ
क्या पाया जो चाहा
असमंजस में हूँ
तब भी हालात वही
आज भी हालात वही
यहाँ तक कि मन का सुकून भी नहीं
लगता है
बहुत कुछ पाया मैंने
मुझे लगता है
बहुत कुछ खोया मैंने
इस खोने - पाने के चक्कर में
उलझ उलझ कर रह गई
अब समझ में आ रहा है
सब मृगतृष्णा है
ताउम्र यही करते बीत जाता है
अंत में महसूस होता है
जहाँ से चले थे
फिर उसी जगह पर आ खडे हैं
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