आज फिर डरी थी मैं
घबराई थी
अतीत में चली गई थी
जब सुना तुमको सांप ने डसा है
डंक तुम्हें लगा था
जलन मुझे हो रही थी
जैसे विष फैल रहा हो
कुछ सूझ न रहा था
बस रोने के सिवाय
सब ढाढ़स बंधा रहे थे
ठीक हो जाएंगे ।
किसी की बात का असर नहीं
एक बार भाग्य ने धोखा दिया था
तब तुमने हाथ थामा था
दो बच्चों की माँ और विधवा
उसको बडा सहारा मिला था
मैं फिर से सुहागन बनी थी
जो भी हुआ जैसे भी हुआ
मजबूरी से या अपनी मर्जी से
पर सहारा तो मिला
किसी की परवाह किए बिना हाथ थामा
सब लोग भूल भी गए
शायद मैं भी भूल बैठी थी
आज सब याद आ रहा है
पिछला सब मानसपटल पर उमड़ घुमड रहा है
अब न फिर पहले वाली घटना दोहराई जाएं
उनकी मौत अचानक कुएँ में गिरने से
सुबह-सुबह ही मेरे जीवन में अंधकार फैला था
पानी निकालने गए थे तुम्हारे भैया
कुएँ पर रखी खपच्ची टूट गई थी
एक क्षण भर में जीवन खत्म
कोई रास्ता नहीं बचा
अभी तो सारी उम्र और दो बच्चों की माँ
पढी - लिखी भी ज्यादा नहीं
क्या होगा भविष्य
इसकी तो कल्पना कर रूह कांप जाती थी
विधवा का जीवन जीना
इतना आसान नहीं
औरत तो दूसरे पर ही निर्भर
समय सारे घाव भुलाने लगता है धीरे-धीरे
छोटे देवर तो तुम थे ही
जवान थे , मैं भी जवान और सुदंर भी
आकर्षण होने लगा
नजदीकियां भी बढी
एक दिन वह हो गया
जो होना न चाहिए था
वैसे भी लकडी और आग एक साथ रहे
तब सुनगेगे ही
मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली थी
सबको पता चला
कुछ खुसर- फुसर हुई
कुछ विरोध हुआ
परिवार का भी बाहर भी
पर तुमने स्वीकार किया
मैं फिर ब्याही गई
इस बार कुंवारी नहीं बल्कि दो बच्चों की माँ
तुम्हारा भी बच्चा गर्भ में
खुशी और उत्साह नहीं
जीवन जीने की चाह
समय तो सारे घाव भर देता है
बच्चे बडे हुए
सब अपने-अपने काम पर लगे
अचानक आज फिर यह हुआ
लगा सांप कहीं काल तो बनकर नहीं आ गया
खैर खबर मिली
सब ठीक-ठाक है
चिंता की कोई बात नहीं
तुम घर आ गए थे
आज लगा
अतीत कभी भूलता नहीं है
घूम - फिर कर फिर वहीं आ जाता है
भूत - वर्तमान और भविष्य के बीच में जीता यह जीवन
कुछ भी भूला नहीं पाता
समय-समय पर एहसास दिला ही देता है
खैर ईश्वर की कृपा रही
जो भी हुआ जैसे भी हुआ
सब ठीक-ठाक ही रहा
वैधव्य को झेलने की अपेक्षा किसी की पत्नी बनना
चाहे वह कैसा भी हो
ज्यादा सुकून का है
आज सर पर छत है सहारा है
जीवन में रंग और मांग में सिंदूर
तुम कभी न हो अब दूर ।
आधा से ज्यादा बीत गया
अब बाकी भी बीते तुम्हारे संग ।
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