पानी का तो कोई रंग नहीं होता
हाँ उसमें कुछ ऐसी बात तो होती है
देखते जाओ फिर भी जी नहीं भरता
समुंदर किनारे लहरों की अठखेलियां
नदियों का बहाव
कभी लगता ठहरा कभी अनवरत
इन्हीं के किनारे तो बडे - बडे ग्र॔थ लिखे गए
संस्कृति इन्हीं के किनारे फली - फूली
प्रेम का रंग यही से परवान चढता है
ज्ञान का द्वार यही से खुलता है
बाबा तुलसी , संत कबीर से तो सभी परिचित है
केवट को कैसे भूलें
जो उतराई में भगवान से भवसागर पार उतारने की बात करता है
उनको भी अपनी जाति का मल्लाह बताता है
विशाल और अथाह फिर भी सीमा में समुंदर
पानी का रंग नहीं फिरभी जीवन को रंगीन बनाता है
फिजा को खुशगंवार बनाता है
पानी तो पानी है नहीं उसका कोई सानी है
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
नहीं कोई दूजा तुझ जैसा
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