क्या शुभ्रता
क्या रंगत
मन मोहक
सबको आकर्षित करता
आज खिला है
मुस्कान भर रहा है
बिना यह सोचे
जिस डाली पर है
वहीं उसे एक दिन गिरा देगा
एक नई कली नए पुष्प का जन्म होगा
वह उसको गोद में ले दुलराएगा
हवा भी प्यार लुटाएगी
जिस तरह यह आज झूम रहा है
वह कल उपेक्षित हो जाएगा
नियति उसकी यही है
फिर भी मुस्कान से भरा है
आज तो अपना है कल को किसने देखा है
प्रेमी के गजरे की शोभा
भगवान के चरणों में अर्पित
या मिट्टी में
जो हो सो हो
आज तो जी लूँ।
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