घर भी सदा एक सा नहीं रहता
वह भी बदलता है
भावनाएं भी बदलती है
वह कभी जो अपना लगता है
एक समय आता है पराया लगने लगता है
घर की भी बदनामी होती है
कभी-कभी रहना भी मजबूरी हो जाती है
कभी-कभी न चाहते हुए भी छोडना पडता है
एक समय एक जो सबको जोड़ कर रखता था
वहीं एक समय अलगाव का कारण बन जाता है
उसमें भी पार्टीशन डाल दी जाती है
जो एक समय सुंदर लगता था
आज उसकी रंगत ही बिगड गयी है
वह टुकड़े-टुकड़े होकर जीता है
सुकून से रहना मुश्किल हो जाता है
विवाद में फंस जाता है
कभी-कभी ऐसा लगता है
कब इस जहन्नुम से बाहर निकले
दूसरी जगह आशियाना बनाएं
वह भी पुराना होता है
बूढे जैसे उसकी स्थिति हो जाती है
टूट - फूट जाता है
ढहने लगता है
कितना मरम्मत करवाए
उसको भी गिराना पडता है
नया बनवाना पडता है
एक समय जिस ठाठ से उसमें गृह प्रवेश किया था
एक वक्त उसी पर बुलडोजर चलवाना पडता है
हर वस्तु पुरानी होती है
उसका महत्व कम हो जाता है
घर भी इसका अपवाद नहीं
एक समय जो बडा लगता है
वहीं दूसरे समय छोटा लगने लगता है
जो सबको समाता था
आज उसमें कोई समाना नहीं चाहता है
सच ही तो है
समय बदलता है
उसके साथ सब बदलता है
घर भी सदा एक सा नहीं रहता है।
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