बदलाव तो हुआ है
मन उसको स्वीकार नहीं कर पा रहा है
परम्परा जो जड जमा कर रखी है
सत्य तो स्वीकार करना पडेगा
कितनी चोट लगती है
जब अहम् आहत होता है
कभी लडकी वालों से सीधे मुंह बात न करने वाले
आज उनकी राह देख रहे हैं
गाँव में यह दृश्य देखा
हर घर में एक - दो कुँवारे लडके हैं
शादी की उम्र हो गई है
कोई नहीं आ रहा है
राह देखते बैठे हैं
जो घर का द्वार कभी तिलकहरू से भरा रहता था
उसका यह हाल
लडकी वाले की भी अब मांग है
लडका ऐसा हो
घर ऐसा हो
छोटी फैमिली हो
काम न करना पडे
शहर में रहना है
लडकियों के भी नखरे हैं
दहेज प्रथा तो अभी भी है
नजरिया अवश्य बदला है
अब वही घर भाग्यवान नहीं
जहाँ लडके हो
अब लडकी वाले भाग्यवान दिख रहे हैं
बेटों वालों का घर रिक्तता से घिरा
बेटियों वालों का भरा हुआ
तीज - त्यौहार पर बेटी अपने पति के साथ आकर घर गुलजार करती है
बदलाव तो हो
होना भी है
लेकिन समझदारी दोनों को दिखानी होगी
तभी सामाजिक ढांचा खड़ा रह पाएंगा
नहीं तो वह लडखडाता रहेगा
नैतिकता का ह्रास होता रहेगा ।
No comments:
Post a Comment