हाँ उस समय केक नहीं काटा था
मोमबत्ती नहीं बुझाई थी
भगवान के मंदिर गए थे
दीए जलाए थे
सुबह-सुबह उठे थे
माता - पिता का आशीर्वाद लिया था
तब ईश्वर के दरबार गए थे
भोर में सूर्य के प्रकाश के साथ दिए जलाकर
अर्धरात्रि या संझा को नहीं
अंधेरों के साथ नहीं
प्रकाश के साथ
बुझाने से नहीं जलाने से
उम्र तो बढती रहती है
हर साल एक साल कम होता है
कम होने की खुशी को सेलिब्रेट किया ??
शायद नहीं
ईश्वर को धन्यवाद
माता-पिता का शुक्रिया
जिनकी वजह से हम हैं
हमारा वजूद है
किसी लायक और काबिल है
तब दीए जला कर
प्रकाश के साथ
जीवन पथ पर आगे बढ़े ।
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