Sunday, 5 January 2025

उजाले का इंतजार

सिंदूरी आभा ने मन मोह लिया
सुबह- सुबह ही मन खिल गया
क्या लालिमा लेकर निखरा है
रात भर जो अंधकार में रहा है 
अंधेरा हमेशा रहता नहीं
उसकी सुबह भी होती है
कोहरा कितना भी घना हो 
छूटता जरूर है
बस इंतजार करना है 
घड़ी की सुई का 
कब आगे बढ़ती है 
एक जगह स्थिर नहीं रहेंगी
गोल - गोल घूमती 
साथ में सबको घुमाती 
चल सको  तो चलो 
मेरे साथ हो लो 
उजाला भी तुम्हारें द्वार पर दस्तक देगा 

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