कितना दुख होता है बेटी की मां को
जब शादी के बाद अपने ही घर में बुलाने और रखने के लिए
दामाद और ससुराल वालों की इजाजत लेनी पड़ती है
सही है और स्वाभाविक भी है
एक पहलू तो यह भी है
बेटी की मां अपने ही घर में
उसे न रख सके प्रेम और सम्मान से
न बुला सके कुछ दिन अधिकार से
उस घर को पराया कर दें
दामाद और ससुराल वाले तो अपने नहीं
अपने कहे जाने वाले उसे पराया कर दें तब
सोच लो उस मां का हाल
जहां वह मजबूर हो
कहने और रहने को तो उसका घर
लेकिन मर्जी नहीं चलती
कड़वा है लेकिन सच है
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