Saturday, 1 March 2025

माॅ गंगा

अब तो सब भीड़ खत्म हो गई 
माॅ गंगा ने सबको स्वीकारा
सबके पापों को अपने में समाहित किया 
अपनी संतान में कोई भेदभाव नहीं किया
जो भी उनके पास आया उसे स्नेह जल से गोद में लिया
दुलराया,  प्यार दिया , अपने ऑचल में लिया 
यह कब तक करेंगी वह 
पाप इंसान करें धोये वह 
कुछ कर्तव्य तो इंसानों का भी बनता है 
माता तो स्नेह से सींच रही है 
पहले भी अब भी हमेशा से 
किसी की मनौती तो किसी की सुहाग की प्राथना 
केवल वह भगीरथ की नहीं 
सबको तार रही है 
माता अपनी संतान का भला चाहती है हमेशा 
तब संतान भी अपना कर्तव्य पालन करें 

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