माॅ गंगा ने सबको स्वीकारा
सबके पापों को अपने में समाहित किया
अपनी संतान में कोई भेदभाव नहीं किया
जो भी उनके पास आया उसे स्नेह जल से गोद में लिया
दुलराया, प्यार दिया , अपने ऑचल में लिया
यह कब तक करेंगी वह
पाप इंसान करें धोये वह
कुछ कर्तव्य तो इंसानों का भी बनता है
माता तो स्नेह से सींच रही है
पहले भी अब भी हमेशा से
किसी की मनौती तो किसी की सुहाग की प्राथना
केवल वह भगीरथ की नहीं
सबको तार रही है
माता अपनी संतान का भला चाहती है हमेशा
तब संतान भी अपना कर्तव्य पालन करें
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