Sunday, 2 March 2025

अब दर्द क्यों ??

मैं सहता रहा 
सब कुछ बर्दाश्त करता रहा 
कभी असहमति नहीं दिखाई 
सहज रुप से सब होता रहा
ऐसा कब तक चलता 
सबकी एक सीमा होती है 
सहने की भी तो होती है
भीतर से टूट रहा था
बिखर रहा था 
अपने को ठगा महसूस कर रहा था 
हाॅ कोई कदम नहीं उठा रहा था 
विरोध नहीं कर पा रहा था 
वह समय भी आ गया 
कभी न कभी आना ही था 
कितना टलता और कितना टालता 
आखिर टूट गया सब 
टूटना अखर रहा है 
ऑखों में चुभ रहा है 
एकाधिकार जो खत्म हो गया 
टूटेगे तो चुभेंगे भी 
अब दर्द क्यों ???

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