Tuesday, 11 March 2025

फूल तुम्हें भेजा है खत में

वह भी एक दौर देखा है हमने 
जब समय धीरे धीरे चलता था 
हम इंतजार करते रहते थे 
उसके गुजरने का 
वह रहता आहिस्ता आहिस्ता 
वह जमाना था खतों और चिठ्ठियों का 
वही तो एक माध्यम था 
इकरार इजहार का 
कुशल - क्षेम जानने का 
डाकिए की राह देखते थे लोग-बाग 
कब किसकी चिठ्ठी आ जाए 
कब अपनों की खबर मिल जाए 
था तो एक कागज का टुकड़ा  
वहीं तो दिल के तारों को जोड़े रखता था 
विश्वास दिलाता था 
सुदूर प्रांत में गये हुए अपने प्रिय की 
अब भी हम तुम्हारें हैं
यह खत इस बात का प्रमाण है
हम रोज तुम्हें याद करते हैं 
प्रियतमा उसे छिप छिपकर न जाने कितनी बार पढ़ती थी 
कभी हंसती कभी रोती कभी सीने से लगाती 
वह आधार होता था उसका 
जो दिलासा दिलाता था
एक सुखद एहसास था 
करीब लाता था और रखता था 
जिंदगियां गुजार दी जाती थी खत के सहारे 
फिर फोन आया दूरी थोड़ा कम हुई 
तब भी खत का सिलसिला जारी रहा
अब आया है मोबाइल 
दूरी रही ही नहीं 
जब चाहो बात कर लो 
लेकिन वह नजदीकी भी न रही 
अब उनके बारें में क्या सोचना 
कहाँ फुरसत है 
तब समय निकाला जाता था 
शब्द उकेरे जाते थे 
भावना छापी जाती थी 
अब तो कहने को फुरसत ही फुरसत 
याद करने की फुरसत नहीं 
समय की रफ्तार तेज हुई है 
मन भी तो भाग रहा है 
टिकना नहीं चाह रहा 
चिठ्ठी में भी विश्वास था 
एक प्यारा सा एहसास था 
वह अब और आज कहाँ 
वह तो वही जानता है 
जो उस दौर से गुजरा हो 
यह भी एक दौर है वह भी एक दौर था 
आहिस्ता ही सही बड़ा प्यारा था 

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