Monday, 6 June 2016

पंतग और जिंदगी

पंतग उडती है ,उडाने के लिए मॉजे को तीक्ष्ण बनाने के लिए न जाने क्या -क्या उपाय
यहॉ तक कि कॉच का भी उपयोग
पंतग का धागा उडाने वाले के हाथ में
पूरी शक्ति और जोर लगाकर
दूसरे से आगे निकलने की होड
कॉटने की होड
कितनी ऊंचाई तक पहुँचे ,इसकी चिंता
पर कभी न कभी कट ही जाती है और
धडाम से नीचे आ गिरती है
जीवन में भी हम आगे बढने के लिए कितना प्रयत्न करते हैं
निखारने और संवारने के लिए
दूसरों से आगे बढने की होड में
हम भूल जाते हैं कि कभी न कभी हमें भी नीचे आना है ,दूसरे हमसे आगे आने की होड में है
मौका मिलते ही हमें काटने नें कोई कोर- कसर नहीं छोडेगे
जिंदगी हो या पतंग जब दोनों ऊँचाई पर जाते हैं तभी नीचे भी आते हैं
कुछ भी स्थाई नहीं
आज हमारी बारी तो कल तुम्हारी
जब तक शक्ति है तब तक वाह- वाह
नहीं तो फटकर पैरों तले या कचरे के ढेर में
समय की मार पडने पर तो अर्जुन की गॉडीव भी भीलों ने छीन ली
जिंदगी की पंतग जब तक उड रही है तब तक ठीक है

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