मैं दीपक हूँ ,सबको उजाला देता हूँ
अंधकार दूर करता हूँ
जब तक तेल है तब तक जलता हूँ
बाद में घूरे या कचरे के ढेर पर
पर मुझे कोई फर्क नहीं
अंधेरा दूर करता हूँ पर बाद में स्वयं अंधेरों में गुम हो जाता हूँ
किसी को याद भी नहीं रहता
आज मेरा रूप बदला जा रहा है
नए- नए चित्रकारी और रंगों से सजाया जाता हूँ
पहले तो केवल मिट्टी का होता था
पर अब तो मोम तथा अन्य धातुओं से भी
कुछ भी हो मुझे तो जलना है
मोम के रूप में पिघलना है
सदियों से मैं यही करता आया हूँ
जलना ,प्रकाश फैलाना ,अंधेरा दूर करना
स्वयं को मिटाता हूँ,पर दूसरों को जीने का मार्ग प्रशस्त करता हूँ
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Friday, 10 June 2016
मैं दीपक हूँ
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