आज बहुत जल्दी थी
सुबह से ही भागमभाग
खाना नहीं बना पाई
विद्यालय पहुची और सीधे क्लास रूम
तासिका खत्म होते ही बाहर निकली
पेट मे चूहे दौड रहे थे
पूछा केन्टीन वाला आया था ??
जवाब नहीं
सब उसका ही इंतजार कर रहे थे
लायक अली आया नहीं
मोबाइल लगा रहे
आखिर मे वह चाय का थरमस
नाश्ते की ट्रे लेकर हाजिर
लोगों के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती थी
यह किसी एक दिन की बात नहीं
अमूमन हर दिन की
लायक का रिश्ता हमारी भूख से जुड़ा
यह तो किसी को याद नहीं रहता
उसका धर्म क्या है??
यही क्यों
विद्यालय मे प्रवेश करते समय
मार्गरेट विल्सन के प्रति
सर श्रद्धा से झुक जाता है
जिन्होंने विदेश से आकर भारत की बेटियों के लिए पहली पाठशाला खोली मुंबई मे
जहाँ की लडकियाँ
पढ - लिखकर आगे बढ रही हैं
विद्यालय का माली
जो बगिया की देखभाल करता है
उसके धर्म से किसी को लेना - देना नहीं
वाचमैन राजकुमार ,यादव या शुक्ला
सब अपने लगते हैं
जाति , धर्म ,भाषा ,प्रान्त को भूल
अटूट बंधन मे बंधे
सुख -दुख मे सहभागी
फिर विवाद क्यों ???
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Monday, 30 April 2018
भूख और धर्म
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