Thursday, 30 August 2018

क्यों सहे बेटी

ससुराल को मायका समझना
वहाँ के लोगों को प्यार से जीतना
अपनी इच्छानुसार नहीं उनकी इच्छा से काम करना
पति को परमेश्वर मानना
हर बेटी को यही सिखाया जाता
विवाह सात जन्मों का बंधन
उसे निभाना कर्तव्य
चाहे भले ही जिंदगी नर्क बन जाय
बंधन को निभाने जिंदगी बंधक बना ली जाय
उसे मनुष्य न समझा जाय
अधिकारों का हनन हो
पर तब भी पत्नी धर्म निभाया जाय
यह कहाँ का न्याय है
अच्छा है कुछ इस पंरपरा को तोड़ रही है
बाहर निकल रही है
अपने हक की लडाई ,लड रही हैं
स्वतंत्र असतित्व स्थापित कर रही  है
किसी की दासी नहीं
किसी के हाथ का खिलौना नहीं
कठपुतली की तरह इशारों पर नाचती नहीं
अपमान और गुलामी उन्हें गंवारा नहीं
सही कर रही हैं
समाज स्वीकार करें
हमेशा दोषी वह ही नहीं
उसे अपना जीवन जीना है
कोस कर जीवन दूभर न बनाए
सम्मान और प्यार से गले लगाए

No comments:

Post a Comment