Tuesday, 5 March 2019

वह मार नहीं प्यार था

जमाना था मार का
डाट -फटकार का
खेलते रह गए और घर देर से आए
तब पड़ी ले दनादन
दोस्तों से झगड़ा किया
वही गली - मोहल्ले से घसीट कर थप्पड़ मारते लाया जाता
पाठशाला मे कोई शिकायत होती
वही पर शिक्षक के सामने लताड़े जाते
भाई - बहनों मे झगड़ा हुआ
सबको थप्पड़ पड़ते
मार के डर से किसी की शिकायत भी नहीं करते
पिताजी का जूता
माँ का चमचा - बेलन शक्तिशाली हथियार
फेल हो गए तब तो और भी आफत
खाना - पानी भी बंद
पहाड़े न रटे तो टिचर जी का डंडा
मुर्गा बनाना
उठ - बैठ करवाना
कक्षा के बाहर खड़े करना
मजाल कि घर मे कोई यह जिक्र करें
तब तो ऊपर से और पड़ती
न कभी नागवार गुजरा
न कभी बुरा लगा
कमोबेश सभी की यही हालत
डर रहता था
तभी तो तबके पहाड़े अभी तक जुबा पर है
कविता अभी भी याद है
जो भी पढ़ा उसकी अमीट छाप है
समय से घर पहुंचना आदत मे शुमार है
दोस्तों की गलतियां भूल कर फिर एक हो जाते
घरवालों की जबरदस्त रोक के बाद भी
माँ और पिता की मार से एक -दूसरे को बचाते भाई -बहन
छुप कर खाना देती बहन
रात को देर से आने पर दरवाजा खोलती बहन
बहन को मेला और फिल्म दिखाने ले जाता भाई
उसकी सुरक्षा मे तत्पर
कभी हाथ न चले तो
मां के आंसू ही सबसे बड़ा हथियार
डाटते और भुनभुनाते पिताजी
रोती हुई मां
अनुशासित होते बच्चे
वह मारना नहीं था
जिंदगी जीना सिखाया जा रहा था
वह थप्पड़ ,जिंदगी के थपेड़ों को सहने की आदत डाल रहा थी
वह मार नहीं प्यार था
उसका भी एक अलग ही अंदाज था

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