Tuesday, 4 October 2022

डर के साये में जी रहा आम इंसान

डर लगता है 
किसी पर विश्वास करने से
 किसी से बात करने में 
किसी से मिलने जुलने से
किसी की सहायता करने से
किसी से दोस्ती का हाथ बढाने से
किसी को पानी पिलाने से
किसी को घर में बैठाने से
किसी के घर जाने से
किसी का फोन उठाने से
किसी को गाडी - टैक्सी में लिफ्ट देने से
बच्चों को किसी के साथ भेजने से
डर का माहौल बन गया है
कब जाने कौन धोखा दे जाएं 
अंदर के शैतान कब बाहर आ जाएं 
साधु वेष में रावण विद्यमान है हर जगह
भलाई का जमाना नहीं  रहा
कदम कदम पर धोखा और फरेब है
नैतिकता खत्म हो गई है
अब तो आस - पडोस पर
कभी-कभी अपने रिश्ते- नातों पर विश्वास नहीं 
तब तो अंजान और अजनबी की बात ही छोड़ दे
डर के माहौल में जी  रहे हैं 
नये नये तरीके से क्राइम 
ये आधुनिक से आधुनिकतम तरीका इजाद कर रहे हैं 
जब तक पता चलता है
तब तक बहुत देर हो चुकी होती है
बहुत कुछ लुट चुका होता है
जान भी चली जाती है
अपराधी,  अपराध छुपाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है
तभी तो कहते हैं 
लंका में भी सीता सुरक्षित थी
यहाँ तो अपनों के बीच भी नहीं 
डाकू के भी कुछ उसूल होते थे
आज तो सब बेमानी है
अपनी जरूरत पूरी करने के लिए किसी भी हद तक जाना
वह फिर पैसे की हो या किसी और चीज की
हम इसी डरे हुए समाज का हिस्सा है
जहाँ विरोध करने पर आवाज को ही खत्म कर दिया जाता है
देखते - सुनते और समझते हुए अंधे - गूँगे और बहरे बन गए हैं 
हिम्मत नहीं डर समाया है
खौफ है अंजाने दुर्घटना का 
डर के साये में जी रहा आम इंसान। 

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