सबके हाथ में रचती है
अपनी लाली छोड़ती है
तभी सबको प्यारी लगती है
पत्थर पर पीसी जाती है
रगड रगड कर बारीक की जाती है
हाथों पर रचने लायक बनाई जाती है
अपनी हरियाली छोड दूसरों के सुहाग की भागीदार बनती है
बिना उसके श्रृंगार अधूरा
कहती है सबसे
जब तक घीसोगे नहीं
जब तक अपने को रगडोगे नहीं
मेहनत का रंग और निखार लाओगे
तभी एक सफल व्यक्ति कहलाओगे ।
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