Thursday, 11 April 2019

बचपना को संभालने वाली मां

मां इंतज़ार कर रही है
सब इंतजाम कर रखा है
बच्चों के आने की आस मे
टकटकी लगाए
निगाहें दरवाजे पर
शरीर मे शक्ति नहीं
फिर भी पकवान बनाया है
त्योहार है न
उसका मुंह मीठा कराना है
उसकी मीठी आवाज सुनना है
भले ही वह दूर है
पर दिल के तो पास है
भले ही वह अलग रहता हो
पर कलेजे का तो टूकड़ा है
रक्त -मांस से सींचा है
बड़ा किया है
उसकी एक झलक
आँखों को सुकून दे जाती
क्योंकि वह मां है
बस उससे प्यार है
ऐसा प्यार जिसका कोई मोल नहीं
निस्वार्थ और त्याग पूर्ण
यह वह कर्ज नहीं
जो उतारा जा सके
धन -दौलत ,ओहदा ,मान-सम्मान
सब फीके है
उसकी गोद ही
सबसे बड़ा सिंहासन है
और उस पर से कभी हटाया नहीं जा सकता
ताउम्र मां ,मां ही रहती है
बच्चा ,बच्चा ही
बचपना को संभाल कर रखने वाली
बस एक ही व्यक्ति है
   संसार मे
वह है मां मां मां

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