Tuesday, 16 April 2019

सुहावनी सुबह

सुबह कितनी सुहावनी
हर सबेरा नयी आशा के साथ
कल क्या हुआ
वह वही खत्म हुआ
रात गई बात गई
जो आज है
जो अभी है
वहीं हम है
हमारी सोच पर सब निर्भर
जीवन मे उतार-चढ़ाव तो निश्चित
ऐसी कोई रात नहीं जिसकी सुबह न हो
हर सबेरा नये संदेश के साथ
सूर्य की सुनहरी किरणे संदेश देती जाती है
अपना विस्तार करती
हर कण कण मे छा जाती
कोई बाधा उन्हें रोक नहीं सकती
अपना असतित्व वह जनाकर ही रहती है
रूकती नहीं
थकती नहीं
हारती नहीं
रात के साथ सब खत्म नहीं होता
रात की कालिमा के आगे
सुहावनी सुबह भारी ही पड़ती है

No comments:

Post a Comment