Wednesday, 12 June 2019

बस बहने दो

हवा चल रही है
सुहावनी  सुबह को और मस्तानी बना रही है
गर्मी से निजात मिली
मन भी प्रफुल्लित
सारी प्रकृति आनंदमय
सब बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे
हौले हौले से चलती है
कुछ कानों में कह जाती है
धीरे से गुनगुना जाती है
मस्ती में झूमती जाती है
सबको मदमस्त किये जा रही
कह रही है मानों
मैं हवा हूँ
स्वतंत्र हूँ
बंधन मुक्त हूँ
अपनी इच्छा से विचरण करती हूँ
मनमानी करती हूँ
मुझे कोई बांध नहीं सकता
मेरी मेहरबानी पर सबका जीवन
मेरा सम्मान करो
मैं जीवन दे भी सकती हूँ
ले भी सकती हूँ
सबकी सांसे मुझसे संचालित
मुझे जगह दो
विचरण के लिए
घुटना  मेरा स्वभाव नहीं
जब तक खुश हूँ
तब तक खुशियाँ रहूँगी
अपनी सुगंध फैलाती रहूँगी
मैं हवा जो हूँ
घुमक्कड़ी हूँ
आसमान से धरती तक मेरा ही साम्राज्य
मुझे न रोको
मुझे न टोको
बस बहने दो

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