पहाड़ भी रोता है
पहाड़ बहुत मजबूत होता है
उसके सामने कोई टिक नहीं सकता
हर मौसम में अविचल खडा रहता है
गर्मी ,ठंडी ,बरसात का उस पर कोई असर नहीं
आंधी - तूफान के थपेडों को सह लेता है
सबको उस पर विश्वास
यह तो कमजोर हो ही नहीं सकता
उसके आंसू किसी को दिखते नहीं
वह गल गल कर बहता है
उसके टुकड़े टुकड़े हो गिरते हैं
पर वह चट्टान है न
थोड़ा सा पिघल गया
थोड़ा सा टूट गया
उसका क्या बिगड़ गया
वह तो विशाल है
यह सब तो बातें छोटीसी है
यही तो समझने की भूल कर बैठते हैं
जिम्मेदारियों तले उसे दबा डालते हैं
उसके मन को समझ ही न पाते
सब मनमानी करते रह्ते हैं
वह अंदर अंदर टूटता रहता है
सिसकता रहता है
और इसका परिणाम भयंकर हो सकता है
जो सबको भुगतना पड़ सकता है
उसको नजरअंदाज न करें
वह पहाड़ है
रक्षक है
वह पुरुष है
जिम्मेदार है
पर उसके पास भावना भी है
वह भी कमजोर हो सकता है
उसका सम्मान करें
उसके टुकड़े न होने दें
No comments:
Post a Comment