Sunday, 8 September 2019

आमची मुंबई लय भारी

गांव बडा प्यारा
हरे भरे खेत
हरी हरी वादियां
पहाडियों से घिरा
छोटी छोटी पगडंडी
बडा सा आंगन
द्वार के बाहर नीम का पेड
थोडी दूर पर जामुन ,आम और महुआं का बगीचा
हौले हौले चलती बयार
मिट्टी भी साथ में अठखेलियां करती
संझा समय बैठ बतियाते लोग
आसपास कुत्ते और बिल्ली भी मंडराते
भोर में चिडियो की ची ची
रात में झिंगुर की आवाज
एकदम शांत और सन्नाटा

सोचा रिटायरमेंट के बाद वही रह ले
पहले तो दो चार दिन ही जाना होता
अब जाकर फुरसत मिली
जीवन का आनंद लिया जाय
दो चार दिन तो ठीक
बाद में आने लगी याद
आमची लाडकी मुंबई

यह जीवन तो रास नहीं आ रहा
बोरियत महसूस हो रही
रोज की वही दिनचर्या
उठना ,खाना-पीना और सोना
समय ही समय
मुंबई में समय का अभाव
भागते रहे ,दौडते रहे
लोकल और रिक्शा पकडते रहे
बारिश की मार और गर्मी का सामना करते रहे
धुआँ और चिल्ल पो का शोर सुनते रहे
देर रात तक जागते रहे
तब एक रविवार ही होता था
वह भी व्यस्त

आज इस शांति और आराम में भी सुकून नहीं
विचलित है मन
लगता है कहीं कुछ खो गया
मुंबई की आबोहवा
वह चहल पहल
मुंबई तो दिन रात जागती है
भागती दौडती है
प्रयास करती है
अनवरत संघर्ष रत
तब वहाँ के वांशिदो को
शांतता कैसे रास आएगी
खाली बैठना कैसे अच्छा लगेगा
कर्मठ मुंबई को तो यह शोभा ही नहीं दे सकता
चलो फिर वही चलो
बोरिया बिस्तर समेटो
यह सन्नाटा नहीं चाहिए
हवा और हरियाली भी नहीं
जो है जैसी है
मुंबई तो बहुत प्यारी है
कहावत है
जहाज का पंछी उड उड फिर जहाज पर आवे

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