Tuesday, 19 May 2020

क्या दिन आ गए

वह सामने से आ रही थी
पडोसन थी मेरी
मैं खुश हो गई
मुस्कराकर आगे बढी
उसने हाथ से इशारा किया
बगल से दूरी बनाकर निकल गई
मैं सोचने लगी
न लडाई न झगड़ा
न वाद न विवाद
फिर क्या बात हुई
पहले तो दूर से देखते ही हाय
दौड़कर गले मिलना
कान में फुसफुसाना
कंधे पर हाथ रखकर टहलना
बात करते करते पीठ पर मारना
आज इतना बदलाव
अचानक हाथ गया मुख पर
मास्क लगा था
ध्यान आया
सोशल डीशस्टिंग बनाकर रखना है
टच नहीं करना है
दूसरों की तो छोड़ दो
अपने चेहरे को भी
क्या दिन आ गए
अब न शादी ब्याह की शान शौकत
न गाजा बाजा
न कोई उत्सव न कोई उत्साह
ईश्वर के कपाट तो बंद
न मंदिर की घंटिया
न भजन कीर्तन
यहाँ तक कि अंतिम यात्रा में भी बिदा करने वाला कोई नहीं
बस चार कंधे मिल जाय
वह भी बहुत
न अपनों से मुलाकात
न किसी के घर आना जाना
क्या दिन आ गए

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