सुबह हुई
खुशगवार मौसम
फिर तेज दोपहर
तपता हुआ शक्तिशाली
धीरे-धीरे संध्या की तरफ प्रस्थान
सुकून और शांति
इसके बाद तो रात होनी है
गहरी और निस्तब्ध
घना अंधेरा छाया
यही तो जिंदगी का फलसफा है
बचपन खुशगवार
चिंतामुक्त और निश्छल
जवानी तपती हुई उर्जा से भरपूर
उसके बाद धीरे-धीरे उम्र की ढलान
अधेडावस्था जहाँ कुछ उर्जा बाकी
अंत में जीवन की रात्रि
घना अंधेरा
शरीर अशक्त
दूसरों पर निर्भर
रात्रि खत्म होने का इंतजार
चिर निद्रा में सो जाने को इच्छुक
बस बहुत हुआ
अब चलो
जग छोड़ो
सबका साथ छूट गया
स्वयं के शरीर का भी
तब अंतिम प्रस्थान की बाट जोहना
यही अनवरत प्रक्रिया मानव की
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